राईट न्यूज / सिरमौर
राज्यसभा में पारित हुए हाटी बिल पर सिरमौर जिले में सियासत गर्मा गई है। हाटी व गुज्जर समुदाय आमने-सामने हैं। शुक्रवार को जिला मुख्यालय नाहन में दोनों ही समुदाय के लोगों ने पत्रकार वार्ता कर अपना-अपना पक्ष रखा। गुज्जर समुदाय ने जहां हाटी बिल के विरोध में सुप्रीम कोर्ट जाने का ऐलान किया है तो वहीं हाटी समुदाय ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा है कि जिनके घर शीशे के होते हैं, वे दूसरों पर पत्थर नहीं फैंका करते। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर सियासत और गर्मा सकती है।
हाटी बिल गुज्जर समुदाय के संवैधानिक अधिकारों का हनन : गुज्जर समुदाय
गुज्जर कल्याण परिषद सिरमौर के पदाधिकारी राज कुमार पोसवाल, नवीन शर्मा, सुभाष चंद चौधरी, हेमराज, सोमनाथ भाटिया व यशपाल ने संयुक्त पत्रकार वार्ता में हाल ही में राज्यसभा में पारित हाटी समुदाय को एसटी का दर्जा दिए जाने के बिल का विरोध जताते हुए केंद्र सरकार सहित भाजपा नेताओं पर जमकर निशाना साधा, साथ ही इस बिल को गुज्जर समुदाय के संवैधानिक अधिकारों का हनन करार दिया। वहीं इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन को ले जाने की चेतावनी देने के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का भी ऐलान किया। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार व भाजपा नेताओं ने राजनीतिक लाभ लेने के इरादे से पूर्व में आरजीआई द्वारा लगाई गई तमाम आपत्तियों को नजरअंदाज कर इस बिल को लोकसभा के बाद अब राज्यसभा में भी पारित करवाया। इससे सरकार न केवल गुज्जर समुदाय, बल्कि समस्त देश के आदिवासी समाज के संवैधानिक अधिकारों का हनन कर रही है। उन्होंने राष्ट्रपति से भी मांग की है कि इस बिल को मंजूरी न दी जाए और पुनर्विचार के लिए भेजें क्योंकि यह आरक्षण की व्यवस्था को कमजोर करने की साजिश है और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। गुज्जर नेताओं ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अपने अधिकारों को बचाने के लिए वे किसी भी हद तक जाएंगे।
अधूरी जानकारी के साथ गलत तथ्य कर रहे पेश : हाटी समिति
वहीं नाहन में केंद्रीय हाटी समिति ने भी इस मुद्दे पर पत्रकार वार्ता की। गुज्जर समुदाय द्वारा हाटी बिल का विरोध करने पर केंद्रीय हाटी समिति के उपाध्यक्ष एवं अधिवक्ता सुरेंद्र सिंह हिंदुस्तानी ने कहा कि जिनके घर शीशे के होते हैं, वे दूसरों पर पत्थर नहीं फैंका करते। उन्होंने कहा कि कभी सिरमौर रियासत का हिस्सा रहे उत्तराखंड के जौनसार बावर को 1968 में एसटी का दर्जा मिल गया था लेकिन गिरिपार के हाटी समुदाय को इसके लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। अब कहीं जाकर हाटियों को उनका हक मिला है। जब जौनसार बावर को एसटी का दर्जा दिया गया था, न तब और न ही आज तक गिरिपार क्षेत्र के लोगों ने इसका विरोध किया, क्योंकि हमारी संस्कृति और व्यवहार इसकी इजाजत नहीं देता। समिति यह जानना चाहती है कि उनके अधिकारों से गुज्जर समुदाय के अधिकारों का कैसे हनन हो सकता है क्योंकि केंद्र से एसटी से ताल्लुक रखने वाले व्यक्ति के आधार पर बजट आता है। समिति ने साफ किया कि हाटी समुदाय का गुज्जर समुदाय से न कोई गतिरोध है और न कभी रहेगा, लेकिन वे अधूरी जानकारी के साथ गलत तथ्य पेश कर रहे हैं।