हर उम्र में बीमारी होती है पर इस उम्र का रोग अवल्ला ही है टीनएज नाम की बीमारी में जाने कौन सी दवाई अंदर जाती है कि साइड एफ़ेक्ट में परिवार बिछड़ता है। माँ की गोद में सोना और बाप को गले लगाना सबसे मुश्किल काम हो जाते हैं। मतभेद, मनभेद से नज़र आते हैं सब्र नाम की कोई चीज़ नहीं होती है, रोक-टोक पसंद नहीं होती सब तानाशाह नज़र आते हैं।
माँ बाप का घर से बाहर जाना तन्हाई नहीं आज़ादी लगता है। बात बहस बन जाती है, ‘हम कभी नहीं बदलेंगे’ दुनिया का सबसे झूठा और टूटा हुआ वादा है। हर एक रिश्ता वक़्त के साथ रूप और स्थान बदल ही लेते हैं। नदी से बहते हैं रिश्ते हर पल नये भी फिर भी वैसे ही।
माँ बाप जैसे बेटों के लिए घर बनाने का, और बेटियों के लिए घर बसाने का इंतज़ाम पल-पल सोचते हैं पर पूछने पर कहते यही हैं कि तुम छोटे हो वैसे ही हो। बच्चे में इतने बदलाव होने के बाद भी, माँ बाप कहते हैं कुछ बदला कहाँ है? तुम तो अब भी वैसे ही बच्चे हो हमारे लिए! !वैसे तो हर किसी की ज़िंदगी में यह उम्र आती है पर कुछ मासूमों की इस उम्र में कंधों पर बोझ आ चुका होता है वो इस अव्वली उम्र से निकले के बाद जब जवानी की दहलीज पर कदम रखते हैं तो उम्र को भी थका देते हैं।
तृप्ता भाटिया