हिमाचल: शिव-पार्वती को आज लगेगी मेहंदी और बटना, कल निकलेगी भोलेनाथ की बरात

हिमाचल: शिव-पार्वती को आज लगेगी मेहंदी और बटना, कल निकलेगी भोलेनाथ की बरात

राइट न्यूज हिमाचल

महाशिवरात्रि पर्व ऊपरी शिमला के ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी प्राचीन परंपराओं और संस्कृति के साथ मनाया जाता है। इस पर्व के लिए ग्रामीण कई दिन पहले से ही तैयारियों में जुट जाते हैं। पर्व से पहले घरों की साफ-सफाई की जाती है और फिर घरों को रंग-रोगन किया जाता है। लोग इस दिन के लिए विभिन्न तरह की सामग्री एकत्रित करते हैं और विशेष पकवान तैयार करते हैं।

शिवरात्रि के दिन घरों में कई प्रकार के पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं, जिनमें पकैन, सनसे और रोट प्रमुख होते हैं। ये पकवान महादेव को चढ़ाए जाते हैं और इस विशेष दिन के बाद ‘बासा’ (पकवान) लेकर लोग अपनी बेटियों और सगे संबंधियों के घर जाते हैं। ऊपरी शिमला के ग्रामीण क्षेत्रों में शिवरात्रि के अगले दिन से बासा बेटियों के घर भेजने की परंपरा है। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता है और एक महीने तक बासा बांटने का यह रिवाज चलता था।

हालांकि, अब समय के साथ यह रिवाज किल्टों से थैलों में सिमट गया है और कुछ लोग अब इस परंपरा को पैसे देकर निभाते हैं। शिवरात्रि के दिन, गांव में अमूमन हर घरों में पारंपरिक ढंग से महादेव की प्रतिमा बनाई जाती है और विधिपूर्वक उसकी पूजा की जाती है। इस पूजा में घर का वरिष्ठ सदस्य या कोई अन्य व्यक्ति उपवास रखकर नरगिस और पाजा की पत्तियों, खट्टे फल और फूलों को सूत के धागे में पिरोकर महादेव की प्रतिमा बनाता है।

फिर शाम को इसे घर में प्रतिष्ठापित किया जाता है और रातभर भजन कीर्तन किया जाता है। बता दें कि आज कई क्षेत्रों में छोटी शिवरात्रि मनाई जाती है। महादेव की मिट्टी की पिंडी बनाई जाती है। वहीं, कई क्षेत्रों में देवी मां पार्वती और शिव जी को हल्दी और मेहंदी भी लगाई जाती है। जिसके बाद पहले दिन की रस्में खत्म होती है। क्योंकि माना जाता है कि मां पार्वती हिमाचल की बेटी है। तो दूसरे दिन मंडप को सजाया जाता है।

महादेव का आवाहन कर उन्हें बुलाया जाता है। जिसमें तमाम तरह के पारंपरिक पकवान बनाकर मंडप को सजाया जाता है। दूसरे दिन बड़ी शिवरात्रि होती है। जिसमें दिन भर कई प्रकार के पकवान बनते हैं।शिवरात्रि की रातभर की पूजा के बाद, ब्रह्मामुहूर्त में सूर्योदय से पहले महादेव को विधिपूर्वक विदा किया जाता है। इस मौके पर घर में सुख और समृद्धि की कामना की जाती है, जो घर के सभी सदस्य के लिए कल्याणकारी होती है।

कुछ दशक पहले तक, शिवरात्रि से एक माह पहले ही गांवों में आंचड़ी की धुनें हर घर से सुनाई देती थीं। यह धुने रातभर चलती थीं और गांव के लोग शिव स्तुति करते थे, जिसे स्थानीय भाषा में ‘आंचड़ी’ या ‘जती’ कहा जाता है। लेकिन अब आधुनिक जीवनशैली और व्यस्तता के कारण यह धुनें केवल शिवरात्रि के दिन ही सुनाई देती हैं। इस ध्वनि में शिव के भजन गाए जाते हैं, जो ग्रामीण जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करते थे। समय के साथ कई परंपराएं और रिवाजों में बदलाव आया है।

अब ग्रामीण क्षेत्रों में आंचड़ी की धुनें पहले जैसी नहीं सुनाई देतीं, और बासा की रस्म भी आधुनिक जीवनशैली के कारण थोड़ा बदल चुकी है। फिर भी, महाशिवरात्रि के दिन जो उत्साह और श्रद्धा देखी जाती है, वह आज भी पारंपरिक रूप से हर घर में जीवित है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि ऊपरी शिमला के ग्रामीणों की संस्कृति और परंपरा को भी संजोए रखने का एक महत्वपूर्ण तरीका बन गया है।

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