राइट न्यूज हिमाचल
हिमाचल प्रदेश में कई लोगों ने घरों में घोड़े व खच्चर पाल रखे हैं। मगर अब इन लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है। दरअसल, हिमाचल में ग्लैंडर्स बीमारी ने पांव पसार लिए हैं। यह बीमारी इंसानों में भी फैलने की आशंका होती है। ऐसे में पशुपालन विभाग अलर्ट हो गाया है।इस कड़ी में ताजा मामला मंडी जिले से सामने आया है।
जहां मकरीड़ी समौण से लिए गए घोड़े के रक्त के सैंपल में ग्लैंडर्स बीमारी पाई गई है। ऐसे में पशुपालन विभाग ने जिलेभर के घोड़े और खच्चरों के रक्त के सैंपल लेने के लिए स्टाफ को दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं।पशुपालन विभाग मंडी के उपनिदेशक डॉ. मुकेश महाजन ने बताया कि कुछ समय पहले प्रदेश के कुई जिलों में ग्लैंडर्स फैलने के मामले सामने आए थे।
ऐसे में मंडी जिला के पशुपालन विभाग ने घोड़ों के रक्त के सैंपल भरना शुरू कर दिए थे। इन सैंपल को जांच के लिए हिसार भेजा गया था- जहां मकरीड़ी समौण में घोड़े के रक्त सैंपल पॉजिटिव पाया गया है।उन्होंने सभी घोड़ा और खच्चर पालकों से सैंपलिंग के लिए स्टाफ का सहयोग करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि ये बीमारी इंसानों में भी फैलने की आशंका होती है।
ऐसे में इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए सभी घोड़ों की सैंपलिंग करना जरूरी है।ग्लैंडर्स एक संक्रामक बैक्टीरियल रोग है, जो मुख्य रूप से घोड़ों, खच्चरों और गधों को प्रभावित करता है। यह बर्कहोल्डरिया मैलेई नामक बेक्टीरिया के कारण होता है। यह रोग गंभीर मामलों में इंसानों और अन्य जानवरों में भी फैल सकता है।
यह रोग मुख्य रूप से संक्रमित पशुओं के संपर्क में आने से फैलता है। अगर समय पर इसका इलाज ना मिले, तो यह जानलेवा भी हो सकता है।ग्लैंडर्स रोग के लक्षणग्लैंडर्स के लक्षण संक्रमित पशु और इंसान में अलग-अलग हो सकते हैं। यहां जानिए लक्षण-पशुओं में लक्षण-श्वसन संबंधी समस्या- नाक से गाढ़ा मवाद निकलना, छींक आना और सांस लेने में कठिनाई।
त्वचा पर घाव- शरीर पर बड़े और गहरे घाव हो सकते हैं, जिनसे मवाद निकलता है।बुखार और कमजोरी- संक्रमित जानवर धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है और सुस्ती महसूस करता है।गांठों का बनना- जबड़े, गर्दन और पैरों में गांठें बन सकती हैं- जो बाद में फूटकर घाव का रूप ले लेती हैं।खून निकलना- मुंह से खून निकलने लगता है।
कमजोर होना -खाना कम खाना और वजन घटना।तेज बुखार और ठंड लगना।मांसपेशियों में दर्द और थकान।फेफड़ों में संक्रमण, जिससे खांसी और सांस लेने में तकलीफ होती है।त्वचा पर फोड़े और घाव।नाक और आंखों से पानी निकलना।ग्लैंडर्स रोग के कारणसंक्रमित पशुओं के संपर्क में आना।संक्रमित पानी या चारे का सेवन करना।संक्रमित पशु के घाव या बलगम के संपर्क में आना।बेक्टीरिया वाले वातावरण में रहना, जैसे पशु फार्म या संक्रमित अस्तबल।
कसाईखानों या पशु चिकित्सा केंद्रों में लापरवाही बरतना।बीमार जानवरों को स्वस्थ जानवरों से अलग करें।संक्रमित पशु को तुरंत पशु चिकित्सक को दिखाएं और आवश्यक कदम उठाएं।अस्तबल और पशुओं के रहने की जगह को साफ और स्वच्छ रखें।ग्लैंडर्स की पुष्टि होने पर संक्रमित पशु को मारकर सुरक्षित तरीके से नष्ट कर दिया जाए, ताकि रोग न फैले।
पशुओं के लिए साफ पानी और पौष्टिक आहार सुनिश्चित करें।इंसानों में बचाव-संक्रमित पशु के संपर्क में आने से बचें, विशेष रूप से उनके घावों, नाक के स्राव और लार से।पशु फार्म, अस्तबल, और प्रयोगशालाओं में सुरक्षात्मक कपड़े, दस्ताने और मास्क पहनें।किसी संदिग्ध संक्रमण के मामले में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।पशुपालकों और किसानों को इस रोग के बारे में जागरूक किया जाए, ताकि वे आवश्यक सावधानी बरतें।