स्थिति ऑल इज वेल से गो टू हेल हो चुकी है!🖋 Tripta Bhatia

स्थिति ऑल इज वेल से गो टू हेल हो चुकी है!🖋 Tripta Bhatia

राईट न्यूज / स्टोरी

हमने बहुत जल्दी जीत का ज़श्न मना लिया था यह जानते हुए भी कि हमारा देश स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में बहुत पीछे है। हमने इतराना जल्दी शुरू कर दिया कि देखो इटली, अमेरिका कुछ नहीं कर पाये पर हमने कर दिखाया, क्या सोच के चल रहे थे कि उन्होंने कोशिश नहीं की होगी। जैसे हमारे देश के लोगों के इम्युनिटी सिस्टम को सब स्ट्रांग बताते हैं वैसे ही विकसित देशों के नागरिक कानून का पालन करना और सहयोग करना बखूबी जानते हैं। हालांकि हर देश की आर्थिक , सामाजिक ,राजनीतिक और भौगोलिक स्थिति अलग है पर हमारे यहाँ तो धार्मिक प्रोगेंडा ज्यादा हालात खराब करता है। खैर!

WHO के मुताबिक़ कोरोना वायरस के पहले केस से लेकर 1 लाख तक पहुँचने में 67 दिन लगे फिर 1 लाख से 2 लाख पॉज़िटिव केस सिर्फ़ 11 दिन में हो गए जबकि अगले 4 दिनों में ही कोरोना से संक्रमित मरीज़ों की संख्या 2 से 3 लाख हो गई। भारत में पहला केस कोरोना पोस्टिव का 30 जनवरी को आया था अब तक आंकड़ा सात लाख को पर कर चुका है। अब दिनों पर मत जाएं वहां की टेस्टिंग कैपेसिटी और यहाँ की में हम तुलना नहीं कर सकते। इस समय हम एक ही दुआ कर सकते हैं जो हमारे कोरोना योद्धा हैं वो सुरक्षित रहें क्योंकि वो हैं तो हम हैं।जैसे कि मैंने कहा कि हमारी परेशानी बाकी देशों से अलग हैं! मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में मानसून आ चुका है। ज़रा याद कीजिये पिछले साल देश मे 13 राज्यों बाढ़ की चपेट में आये थे और 10 लाख लोग बेघर हुए थे। इस बार कोरोना की समस्याएं भी है सरकार के आपदा प्रबन्ध को अभी से तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए। स्कूल और सुरक्षित जगहें तो अभी राहत शिविर बनी हुई हैं। बाढ़ की स्थिति में तो आवादी का बड़ा हिस्सा चपेट में भी आता है फिर इस बीमारी के साथ राहत कार्य कैसे होंगे। अब जंग है तो हमे हर मोर्चे पर तैयार रहना होगा। मेरा मक़सद भय पैदा करना नहीं है पर ऐसे हालातों में सकारात्मक कैसे बनना है इस पर सोचना भी है। बिल्कुल ऐसे ही जैसे भारत में कोई एक-दो नहीं ऐसी लाखों लड़कियाँ है जो पैदा होने के लिए तरसती हैं, हो भी गयीं तो पढ़ाई के लिए तरसती हैं, एक अदद जींस पहनने के लिए तरसती हैं, घर से बाहर निकल कर घूमने को तरसती हैं, किसी लड़के से खुल कर बात करने के लिए तरसती हैं, मुफ्त में मीडिया, मेडीकल और कार्पोरेट में इन्टर्नशिप करने को तरसती हैं। उन करोड़ों लड़कियों के पास हार स्वीकार कर के आत्महत्या करने के सहज बहाने हमेशा उपलब्ध हैं, उन्हें खोजने नहीं पड़ेंगे। लेकिन वो वह जानती है कि जिन्दगी की सकारात्मकता से बढ़ कर कुछ नहीं। ऐसे ही हमें आने वालों दिनों के लिए तैयारी करनी है और लड़ना है, एक दिन हमें अपनो से मिलना है जिनसे मिलने की उमीद छोड़ चुके हैं। फैंसला हमारा होगा कि हमें ऑल इज वेल रखना है या गो टू हेल।

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