Right news:-तृप्ता भाटिया की कलम से :— किसी का सहारा नहीं बन सकते हैं तो तनाव की बजह भी मत बनिये?

Right news:-तृप्ता भाटिया की कलम से :— किसी का सहारा नहीं बन सकते हैं तो तनाव की बजह भी मत बनिये?

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तनाव वो अनकहा दर्द है जिसके अपने ही मर्ज हैं! यह खुद को भी खुद से दूर ले जाता है!

मानसिक तनाव तो उन्हें भी है जिसको देखकर तुम्हें लगता है कि इसे किस चीज़ की कमी है। आये दिन फिल्म नगरी से जुड़े लोगों की सुसाइड की न्यूज़ तो आप पढ़ते ही हैं, जब वो किसी तनाव में आ कर अपनी ज़िंदगी खत्म कर देते हैं तो आम इंसान तो रोज़ दो वक्त की रोटी, इज्जत बचने व बीमारी से लड़ाई लड़ रहा है। इसकी के बीच शुरू होता है तनाव का सफर और ज़िन्दगी को उस मकाम पर ले जाता है जहाँ अपनी ही घुटन में सांस थम जाती है। तनाव का सबसे अहम और मामूली सा कारण चीजों का हमारे हिसाब से नहीं होना। परिवार में तालमेल नहीं बन रहा, आमदनी से खर्चे ज्यादा हैं, परिवार के किसी सदस्य को लेकर, या फिर प्रेम की अनुभूति उस सीमा पर है कि किसी के न मिलने से ज़िन्दगी खत्म ही है। खुश होना और दुःखी होना हमारी जीवनशैली का हिस्सा है।
तनाव को झेलने की क्षमता एक सीमित समय तक होती है। यदि आपके आस-पास के किसी व्यक्ति का रवैया कुछ दिनों से उसके स्वभाव के विपरीत है तो वो किसी तनाव में है। हमें अपने परिवार के किसी सदस्य में यह देखने को मिलता है तो हमें उसका दोस्त बनने की तैयारी कर लेनी चाहिये। कुछ छोटी-छोटी बातें उसके मन मुताविक कर के देखो, निश्चय ही उसको एहसास दिलवाया जा सकता है कि हम उसकी हर बात मानते हैं, उसका परिवार में विशेष महत्व है। शायद यह छोटी-छोटी बातें उसे सोचने पर मजबूर करें कि मैं क्यों दुनिया की परवाह करूं, मेरे अपने वही हैं जो साथ हैं। तनाव का सबसे ज्यादा असर हृदय, मस्तिष्क और अहम अंगों पर पड़ता है। यूं तो दुनियाभर में तनाव के खतरों पर रिसर्च हो रही है, कम करने के उपाय तलाशे जा रहे हैं, लेकिन यह भी सच है कि नई पीढ़ी पर इसका जोरदार हमला हो चुका है। भारत भी अछूता नहीं है वल्कि हर सातवां व्यक्ति इसका शिकार है।यह समस्या तेज़ी से सबको अपनी चपेट में ले रही है। अक्सर कामकाज के दौरान हमें मानसिक पीड़ा और जोखिमों से गुजरना पड़ता है। शोध के मुताबिक गहरी नींद इससे से निकलने का अच्छा विकल्प है, यदि आप भी अनिद्रा का शिकार हैं तो सावधन रहें। हो सकता है आप अवसाद से ग्रस्त हैं। अनियमित जीवनशैली को पटड़ी पर लाने की सोचिये, चिंता चिता के समान होती है और धीरे-धीरे बढ़कर तनाव का रूप ले लेती है!यदि आपके आस-पास या परिवार में कोई गुमसुम रह रहा है! उसका व्यवहार उसके चरित्र के अनुसार नहीं रहा है, अकेला रहना चाह रहा है तो उसकी इस परेशानी से निकलने में मदद जरूर करें। तनाव किसी भी उम्र में हो सकता है पर ज्यादातर 30 से 40 वर्ष के लोगों में अधिक पाया गया है। नकारात्मक सोच, विटामिन डी की कमी और थायराइड जैसी बीमारी का होना इसका कारण बन सकता है। कुछ दवाओं के गलत असर की बजह से भी हो सकता है! अतः दिवाई डॉक्टर के परामर्श के बाद ही लें।तनाव के ग्रस्त व्यक्ति कई बार अपना जीवन समाप्त करना ही हर परेशानी का हल समझता है। बहुत से लोगों ने अपना बहुमूल्य जीवन खो भी दिया।हमें जब मेहनत के नतीजा अनुरूप नहीं मिलते, प्रेम, दोस्ती में दगा मिलता है या फिर कुछ लोग हमें नीचा दिखाने में कामयाब हो जाते हैं तो हम हीन भावना का शिकार हो जाते हैं। परिस्थितयों के जाल में हम इस कदर फंसते चले जाते हैं कि अपने आप सवाल जवाब करने से लेकर एक दिन जीवन लीला समाप्त कर देते हैं। अब वक्त इसके ऊपर विचार और चर्चा का भी आ गया है।

किसी का सहारा नहीं बन सकते हैं तो तनाव की बजह भी मत बनिये?
तृप्ता भाटिया शिमला

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