राइट न्यूज:— पूर्व मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिंह के जन्म दिन पर विशेष रिपोर्ट। खट्टी मीठी यादे।

राइट न्यूज:— पूर्व मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिंह के जन्म दिन पर विशेष रिपोर्ट। खट्टी मीठी यादे।

पांवटा साहिब — हम बात कर रहे है राजा वीरभद्र सिंह की जिन्होने छै बार हिमाचल प्रदेश में बतौर मुख्यमंत्री सेवाऐ दी। और इस सेवा के दौरान खासतौर पर उन्होने हिमाचल के लोगो के हितो की रक्षा की इतना ही नही कई बार वे केन्द्र के बडे नेताओ से भी हिमाचली हितो के लिये भिड गये।

बताते है कुछ जानकार कि :— ” इसी कमरे में हुआ था वीरभद्र सिंह का जन्म ” शांति पैलेस सराहन के एक कमरे की तरफ इशारा करते हुए वहां के केअर टेकर ने बताया कि 23 जून 1934 को महारानी शांति देवी और महाराजा बुशहर पदमदेव को पुत्र प्राप्ति हुई थी।राजा साहब के जन्म वाले कमरे को अब बंद ही रखा जाता है।सराहन शिमला से कोई 150 किलोमीटर तो रामपुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।बुशहर रियासत के महाराजा पदम् देव का महल वैसे तो रामपुर में पदम पैलेस है लेकिन एक महल उन्होंने अपनी कुलदेवी भीमाकाली के मंदिर के पास भी बनबा रखा है।इस महल को 1917 में बनबाया गया था।यह महल बीर सिंह ओवर सीयर की देखरेख में बना था।यहीं से हिमालय पर्वत की श्रीखंड चोटी की पर्वतमाला दिखाई देती है।हिमाचल टूरिज्म का होटल श्रीखण्ड भी यही स्थित है।सराहन का भीमाकाली मंदिर काष्ठ कला का अदभुत नमूना है।ठीक वैसी ही लकड़ी का काम शांति पैलेस में हुआ है।सरहान के लिए ज्यूरी से रास्ता कटता है।शिमला रिकोंगपीओ रोड पर स्थित ज्यूरी कस्बे से सरहान की दूरी 17 किलोमीटर है।ज्यूरी से सरहान रोड पर सेब ओर नाशपाती के बगीचों की भरमार है।वीरभद्र सिंह जब भी माँ भीमाकाली की पूजा के लिए सरहान आते हैं तो शांति पैलेस में ही ठहरते हैं।उनके साथ आये अधिकारी साथ लगते सर्किट हाउस में ठहरते हैं।राजा साहब ने यहां हेलीपेड भी बना रखा है।पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 राजीव गांधी जी भी सराहान में माँ भीमाकाली के दर्शन कर चुके हैं।

” साहब रहने दो गांव का दौरा… पेड़ से पांव फिसला तो नीचे पानी का बहाव पता नहीं कहाँ से कहाँ पहुंचा दे” “पदम तू रहने दे,मैं खुद चला जाऊंगा ” कहकर साहब ने पेड़ पर पांव रख दिया तो मेरी हवाइयां उड़ने लग गईं कि अगर थोड़ा सा भी बैलेंस बिगड़ा तो उफनती वास्पा नदी सीधे करछम बांध में फेंकेगी।मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिंह के मुख्य सिक्योरिटी गार्ड पदम सिंह ठाकुर बताते हैं कि किन्नौर में आई बाढ़ से बहुत से पुल बह गए थे जिससे कई गांव शेष दुनिया से कट गए थे।प्रशासन उन पीड़ितों तक पहुंचने में असफल था इसलिए राहत पहुंचाने का कोई रास्ता नहीं था।ओर फिर राजा साहब ने उस तरफ जाने की जिद्द पकड़ ली।राजा साहब को अब कौन समझाए की पार गांवों तक पहुंचने के लिए उफनती नदी कैसे पार करनी ? प्रशासन के हाथ पांव फूल गए जब राजा साहब शिमला से उन गांवों का दौरा करने निकल पड़े।आनन फानन में मीटिंग बुलाई गई कि राजा साहब को कैसे रोका जाए।अंत मे यह फैसला हुआ कि नदी के इस तरफ ही कोई जनसभा करवा दी जाए। पेच वहीं फंसा था कि साहब न माने तो ? लेकिन सभी अधिकारी इस बात से सहमत थे कि जब आगे जाने का रास्ता नहीं मिलेगा तो साहब खुद मान जाएंगे।साहब का काफिला आ पहुंचा।आगे कुछ किलोमीटर पैदल चलने के बाद साहब को बताया कि यहां पुल बह गया है आगे नहीं जाया जा सकता।तो साहब ने कुछ स्थानीय लोगों से पूछ लिया कि फिर वहां से लोग कैसे आ जा रहे हैं।तब उन्हें बताया गया कि एक देवदार के पेड़ को नदी के आर पार डाला गया है उसी पर चल कर कुछ लोग नदी पार कर रहे हैं।साहब ने उस तरफ चलने का इशारा किया।वो जगह ऊंचाई पर थी।साहब ने हाथ मे लकड़ी का डंडा पकड़ा और चढ़ गए सारी चढ़ाई ओर पहुंच गए उफनती नदी के छोर पर।बड़ा ही डरावना दृश्य था।नीचे तेज़ बहती नदी और ऊपर देवदार के कटे पेड़ का टेम्परेरी पुल।कुछ लोग उस पार से पेड़ से होकर इस पार आ गए।तो राजा साहब ने जिद्द पकड़ ली की पार जाना है तो जाना है। लोगो ने समझाया कि साहब यह बड़ा खतरनाक होगा।तो साहब बिफर गए और लोगो को डांट कर हाथ छुड़ाकर पेड़ पर पांव रख दिया।सभी हाथ जोड़कर बिनती करने लग गए कि यह जान हथेली पर रखने वाली बात होगी।पर साहब न माने।फिर एक रस्सी आर पार फेंकी गई।उसी के सहारे पार जाना था।पानी की आवाज़ इतनी खतरनाक थी कि कलेजा बाहर आ रहा था।साहब साथ वाले व्यक्ति कोपीछे धकेला ओर चल पड़े।एक एक कदम जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष था।पर बिना डर व भय के साहब के कदम बढ़ते जा रहे थे और अधिकारियो व लोगेा के दिल की धड़कनें नीचे बहते पानी से भी तेज थी।सांसें फूली हुई थी।ओर किसी की हिम्मत नहीं हुई कि पीछे चलें।पेड़ का पुल भी 50 फिट होगा।वो पचास कदम भुलाए नही भूलेंगे।एक एक कदम मोैत की तरफ बढ़ रहा था।पर साहब को पता नहीं क्या हो गया था।ऐसे चल रहे थे जैसे वो यहां हर घँटे आर पार जाते हों।पार गांवों के लोग सांस रोके सब एकटक नदी पार करते देख रहे थे और राजा साहब जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे।पुल पार करते ही राजा साहब लोगों से मिले और प्रदेश के मुखिया को इन बिषम परस्थितियों में अपने बीच पाकर हर चेहरा अपना दुख दर्द भूल गए उस समय लोगो ने नारा लगाया कि राजा नही फकीर है हिमाचल की तकदीर है। उन्हे वास्तव मे हिमाचल के लोगो के हितो की रक्षा करना व हिमाचल के लोगेा से बहुत ही प्यार है। जब जब वे दिल्ली में केन्द्रीय मंत्री के पद पर आसीन रहे तो हिमाचल के लोगेा को तुरत ही पहचान लेते थे और उसके पूरे खानदान का नाम तक उनकी जुबां पर रटा होता था।

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