मैं एक एवरेज स्टूडेंट रही हूं, जिसको घरवाले बोलते थे पढ़ना तो है नहीं डीपु से राशन ही ले आ।😋
शिक्षकों की फोटोशूट हुई तो साइंस वाले हमेशा आगे खड़े किए गए..पहले पूछे गए..अभिभावकों द्वारा पहले ढूंढे गए..बाकियों से ज्यादा पैसे दिए गए..ज्यादा ट्यूशन लिए..ज्यादा इज्जत कमाई.
दूसरी लाइन में रहे भूगोल-हिस्ट्री-अंग्रेजी वाले..थोड़ा कम पूछे जाने वाले..जिनसे ज्यादा पीछा छुड़ाया गया..जिनके पास बाद में आया गया..जिनकी क्लासें अक्सर मैथ्स-फिजिक्स वालों को दे दी गयी ..जिनसे कह दिया गया कि बस नोट्स बंटवा दीजिए..उनमें से कुछ इतिहास में घुस कर बार बार ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में नारे लगाना चाहते थे। वो फ्रेंच रेवोल्यूशन पढ़ाते वक्त गले में दर्द हो जाने तक बोलते थे ताकि इसके जरिए वो बच्चों को आवाम की ताकत का एहसास दिला सकें। वो संविधान लिखने वालों की आत्मा ब्लैकबोर्ड पर ड्रॉ कर देना चाहते थे ताकि ‘Nation first’ चीखने वालों को Naton से पहले ‘First’ की परिभाषा समझा पाएं लेकिन उनने अक्सर नोट्स बटवा दिया क्योंकि मैथ्स वाले को ज्यादा घण्टी की जरूरत पड़ती रही..क्योंकि रिपोर्ट कार्ड में मैथ्स के अंक सबसे पहले देखे गए..क्योंकि आर्ट्स के विषय में अव्वल आने वालों को रट्टू कहा गया और इंग्लिश लिटरेचर की औकात मेहमानों के आगे ‘My name is XYZ.. bla..bla and bla’ बुलवाने तक सीमित रखी गई।
थोड़े किनारे पर खड़ी रखी गयीं हिंदी और संस्कृत की शिक्षिकाएं जिनसे किताब का पाठ बाद में और संस्कार बांटने की उम्मीद पहली लगाई गयी। इनको ट्यूशन नहीं मिले न किसी ने इनसे खौफ़ खाया..इनको सुना गया तो सिर्फ अपनी परसेंटेज बढ़ा कर रैंक लिस्ट में आने के लिए..इनके पास नहीं भी आया गया या आया गया तो बच्चों की हैंडराइटिंग की शिकायत लेकर..’हैंडराइटिंग नहीं सुधरेगी तो बोर्ड में मैथ्स साइंस के भी अंक कम हो जाएंगे!’
और फिर सबसे पीछे ठेले गए म्यूजिक, ड्रामा, डांस , ड्राइंग और स्पोर्ट्स के टीचर। इनको स्कूलों में तरकारी पर धनिए की गार्निशिंग की तरह रखा गया। इन शिक्षकों के पास ज्यादा रहने-सीखने वालों को गणित और कैमेस्ट्री वालों ने कम अंक आने का डर बार बार दिखाया..परीक्षा परफॉर्मेंस गड़बड़ाने पर कभी इनके खेल पर तो कभी संगीत पर ताने कसे गए। वो कटते गए इन शिक्षकों से और शिक्षकों ने भी इनको खराब मछली सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
पर इन आर्ट्स-लिट्रेचर-स्पोर्ट्स-ड्रामा वालो शिक्षकों ने कुछ बच्चों को टोह लिया था..उनके सर पर हाथ भी रखा था..कभी भाषा की पकड़ देखकर खुशी से गले भी लगा लिया था। उनने कुछ बच्चों की आँखों में त्रिकोणमिति से ज्यादा हड़प्पा के आर्ट फैक्ट्स के लिए चमक देखी थी..उन्होंने देखा था कुछ को जो वर्ल्ड हिस्ट्री बस यूँ ही पन्नों पर उतार लिया करते थे,
लेकिन क्या आज उनपर ये इल्जाम लगाना पूरी तरह सही होगा? मतलब सारी जिंदगी पीछे की लाइनों में धेकेले जाने वाले शिक्षक, अपने विषय की वजह से कम कमाने वाले शिक्षक,अपने शिष्यों को भी क्यों देखना चाहते वहाँ। जिस एडुकेशन सिस्टम के तहत आर्ट्स या लिटरेचर तब उठाया जाता है जब बच्चे को पढ़ाई में ‘कमजोर’ का टैग दे दिया जाए..जिस सिस्टम के तहत साइंस से इतर स्ट्रीम वाले बच्चे स्कोप के नाम पर सिर खुजाते हैं.. जहाँ B.Sc वालियों को बैंक परीक्षा के लिए दो साल दे दिए जाते हैं और B.A वालियों की शादी डिग्री मिलने से पहले तय कर दी जाती है..जहाँ साइंस के अलावा बाकी सारे स्ट्रीम को ‘मजबूरी’ कह कर पढ़ा जाता है.. जहाँ मैथ्स वाला भाई कॉमर्स वाले भाई से ज्यादा लाडला होता है वहाँ सिर्फ शिक्षकों पर सारा दोष देना कैसे सही रहेगा। जिसके जड़ को चीटियों ने चाल दिया है वह पौधा कहाँ से दस शाखा उगाएगा।

