प्रभु शीघ्र आये और मेरे प्राण ले जाइए🖋Tripta Bhatia

प्रभु शीघ्र आये और मेरे प्राण ले जाइए🖋Tripta Bhatia

हे! प्रभु शीघ्र आये और मेरे प्राण ले जाइए मैं अत्यंत कष्ट में हूँ इस फेसबुक के साथ। क्या-क्या दिन दिखा रहा है तू! अपनी ही मनमर्ज़ी पर आ गया है! क्या तुझे इंसान इतना भा गया है, जो ढेरों के ढेर तू रोज़ उठा रहा है! बता इतना कहर क्यों ढा रहा है। प्रभु मुस्कुराये और बोले मेरे नाम से तुम भीख से लेकर वोट तक ले रहे हो और बदले में जहाँ कण-कण में “मैं” विद्यमान हूँ ” सब नष्ट
भ्रष्ट करने पर उतारू हो ! कुछ चिलगोज़ों को तो तुमने अपना अर्ध्य ही समझ लिया है।
जब मैं उचित समय पर भी किसी को लेने आता था तो बोलते थे, निर्देयी हो गया है! अब क्या?सब तुम अपनी मर्ज़ी से चलना चाहते हो! मेरे दिए हर मौसम से तुझ इंसान को एतराज़ है, अब गर्मी है अब ठंड कर, ओ! मेरे भाई मैं तो गन्ने का रस, गोलगप्पे, बंटेवाला सोडा, लच्छे वाली फुल्फ़ी,मक्की, शकरकन्दी, हाथों से बनाई जुराबें सड़क किनारे मिट्टी के बर्तन बनाने वाले और वो जो ट्रैन, बस के पीछे दौड़ कर ठंडी कुल्फी बेचते हैं न सबका ध्यान रखता हूँ! पर तुम! फूटपाथ पर सोये को कुचल देते हो और निर्देयी “मैं” !फूल सी कोमल बचियाँ नोच ली तुमने और निर्देयी “मैं”! पेड़-पौधे जीव-जंतु सबका स्वाद लिया तुमने और निर्देयी “मैं”। जिस्म से लेकर जमीर बेच दिए तुमने और निर्देयी “मैं”, मेरी बनाई सुंदर सरंचना प्रकृति और इंसान को मार दिया, काट दिया फूंक दिया ज़रा लज़्ज़ा नहीं आयी तुम्हें और निर्देयी मैं!
हे! इंसान तुमने तो रूह तक बेच दी, किसने हक़ दिया! क्या एक टूटा फूल शाखा से फिर लगा सकते हो? क्या किसी को मार कर जीवित कर सकते हो? फिर किसने हक़ दिया तुम्हें। जब-जब तुमने अपने स्वार्थ के लिए जिस धरती को माँ बोलता है तू उस पर प्रहार किए हैं तुमने, मैं भी खून के आंसू रोया हूँ, कि मेरी सन्तान इतनी निर्जल, पापी कपटी और मौकापरस्त कैसे हो सकती हैं, इन्ही हाथों से बनाया है तुम्हें , तुम्हारी सुख सुविधा के लिए हर चीज़ मुहैया करवाई फिर भी तुम्हारी तृप्ति न हुई और गुनाह पर गुनाह करते गये।। शीतल जल विषैला कर दिया, पेड़ों की लतायें अनाथ कर दीं, मंदिर, मस्जिद अपने कर्मों से अपवित्र कर दिये! दिलों में इतनी कुंठा है तुम्हारे वहाँ भी मैं अब रह नहीं पा रहा! पहाड़ काट के मैदान कर दिये, गुलिस्तां सारे वीरान कर दिये , मेरे बनाये इंसान का लहू तू मेरी ही बनाई मजहबी खैरात को सुरक्षित करने के लिए वहा रहा! अरे! वाह अब मुझे तेरे सरक्षण की जरूरत है, औकात देखी है अपनी मेरे रहमोकर्म पर है तू और बना फिरता है मेरा रखवाला।
तू नश्वर है! बताया था न? फिर क्यों? सवाल करता और कोषता है तू। तू मुझसे था “मैं” तुझसे नहीं हूँ फिर भी तेरे बहुत से गुनाह बच्चा समझकर माफ कर देता हूँ! तुझे सिर्फ अपनी चिंता है पर मुझे सबकी है, जो होता है उसके लिए कर्म जिमेंबार हैं “मैं” नहीं!
हे! प्रभु मैं तो अभी बच्चा हूँ! मैंने इतने कर्म नहीं किये, मैं भी इस पापी दुनिया में दुःखी हूँ इसलिए पुकारा था कि शीघ्र आइये और मेरे प्राण ले जाये! आप तो मेरे घरवालों की तरह शुरू हो गए लेक्चर देने! आपसे कोई मिस्टेक हुई है! गलती से सिग्नल ले लिया अपने! इतनी जल्दी मेरे याद करने पर आ गये! प्लीज मुझे भूल जाना और जब तक मैं न चहुं लेने मत आना!
प्रभु फिर मुस्कुराये! बोले! तू अपने हिस्से की जिंदगी जी ले! मैं तुझे अभी नहीं ले जाऊँगा! प्राण लेना तो इजी पर मेरा पूरा स्टाफ है अभी बिजी! तू चिल्ल कर मौज मना बस याद रखना तू “किरायेदार” है! मैंने भी मजाकिया मूड से बोला दिया बस आने से पहले एक बार दस्तक दे देना तकि उस जहां में जो काम आये मैं समेटे लूँ!

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