कोरोना बेदर्द है हम तो नहीं! बच्चे लड़ेंगे फिर पढ़ेंगे? Tripta Bhatia writer..

कोरोना बेदर्द है हम तो नहीं! बच्चे लड़ेंगे फिर पढ़ेंगे? Tripta Bhatia writer..

अनलॉक-देश में कुछ कंटेन्मेंट जोन को छोड़कर लगभग सारा देश खुल गया है। जो थोड़ा बहुत बचा है गतिविधियां अगले महीने से शुरू हो जाएंगी।सरकार की इसके पीछे की बजह अब सबको समझ आ गयी है यदि बन्द रखा जाता तो रोज़ कमाने खाने वाली अस्सी प्रतिशत आबादी भूख से ही मर जाएगी। अब सारी जिमेबारी हम पर आ गयी है, अब यदि समझदार हैं तो किसी समबोधन की आवश्यकता नहीं हैं। जो लोग भूख से थोड़ा कम खा कर सो जाते थे उनको समझ आ चुकी है कि भले ही कम मीले पर बिना खाये नींद नही आएगी और अपने बच्चों को बिलखता हुये तो कतई नहीं देख सकते हैं। पुलिस भी थकने टूटने लगी है और स्वास्थ्य कर्मी भी आखिर वो भी इंसान ही हैं। सारा दिन धूप, बारिश और पीपीई किट पहन के रहना आसान बात नहीं है। अब विशेषज्ञों द्वारा जो दिशानिर्देश दिए हैं उनको पालन कर खुद को अपने परिवार को और समाज को बचाने की जिमेवारी हमारी है। कोरोना काल एक जुलाई से शरू होगा अनलॉक दो में आने वाला है। इस समय शायद बच्चों के स्कूल खोलने के फैंसले लिए जाएं, अगर शिक्षा संस्थाओं या केंद्र के दवाब राज्य सरकारें सोशल डिस्टेंसिग, मास्क लगाना और अन्य शर्तों के साथ स्कूल खोलने का निर्णय लेती हैं तो भी यह कदम सही नहीं होगा। बच्चों से इस तरह के नियम पालन करवाना बहुत ।मुश्किल है, इस दौर में बच्चे घर से बाहर निकले ही नहीं हैं उंन्हे मास्क लगाने की आदत नहीं है न ही बर्दाश्त कर सकते हैं। विशेषज्ञ की माने तो बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता नहीं के बराबर होती हैं। जब तक कोविड कि वैक्सिन नही आ जाती तब तक बच्चों को खास ध्यान देने की जरूरत है। एक साल उनके जीवन से ज्यादा कीमती नहीं है। बेहतर होगा उनको घर पर पढ़ना और भविष्य की चुनौतियों के लिये तैयार करना। बाकी अभिभावकों के मन की तो वही बता सकते हैं।

तृप्ता भाटिया(शिमला)✍️

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