नमक की बोरी मे आई माँ बाला सुंदरी, पिंडी के रुप मे…

नमक की बोरी मे आई माँ बाला सुंदरी, पिंडी के रुप मे…

राईट न्यूज स्टोरी / अनीता चौहान

देव भूमि हिमाचल प्रदेश व हरियाणा की सीमा पर स्थित औद्योगिक कस्बे कालाआंब से मात्र छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव त्रिलोकपुर में माता बाला सुन्दरी का भव्य मंदिर श्रद्धालुओं को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है।

वैसे तो इस मंदिर में पूरे साल भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, मगर साल में नवरात्रों के समीप हरियाणा और हिमाचल की सीमा पर स्थित त्रिलोकपुर के महामाया बाला सुंदरी मंदिर में भक्तों की भीड़ बढ़ जाती है।प्रथम नवरात्र से ही इस मेले में भक्तों का विशाल जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है जो कि नवरात्रों के दौरान जारी रहता है। यहां साल में दो बार अश्रि्वनी व चैत्र मास के नवरात्रों में मेला लगता है जिसमें लाखों की संख्या में दूर-दराज से माता के दर्शनों हेतु भक्त आते हैं।

अति शांत एवं सुरम्य प्राकृतिक परिवेश में स्थित इस मंदिर का इतिहास 400 साल पुराना है। त्रिपुरबाला, बालासुंदरी व त्रिभवानी तीनों देवियों के यहां विराजमान होने से यहां का नाम त्रिलोकपुर पड़ा। माता बालासुंदरी के भवन से ढाई किलो मीटर दूर पूर्व दिशा में त्रिपुरा बाला ललिता देवी तथा दस किलो मीटर दूर उत्तर पश्चिम दिशा में त्रिभवानी का मंदिर स्थित है। इन दोनों के दर्शन करने से पूर्व भक्त ध्यानू के दर्शन अवश्य करते है। इसके अलावा यहां देवी ताल तथा पीपल व मौलसिरी के प्राचीन मंदिर भी स्थित है।

मां दुर्गा का बाला सुंदरी रूप सैकड़ों वर्ष पूर्व यहां कैसे पहुंचा

इसको लेकर भक्तों का मानना है कि 350 वर्ष पूर्व यहां एक व्यापारी रहता था। रामदास नाम का यह व्यापारी एक बार मुजफ्फरनगर (यूपी) से यहां नमक लेकर आया था। उसने काफी नमक बेचा लेकिन नमक कम ही नहीं हो रहा था। यह देखकर वह घबरा गया। रात्रि को स्वप्न में मां भगवती ने उस व्यापारी को बाल रूप मे रूप में दर्शन दिए और कहा कि मैं पिंडी रूप में तुम्हारी नमक की बोरी में आ गई थी और अब मेरा निवास तुम्हारे आंगन में स्थित पीपल वृक्ष की जड़ में है। लोक कल्याण हेतु तुम यहां एक मंदिर का निर्माण करो। सुबह होने पर व्यापारी ने पीपल का वृक्ष देखा। तभी बिजली की चमक व बादलों की गड़गड़ाहट के साथ पीपल का पेड़ जड़ से फट गया तथा माता साक्षात रूप में प्रकट हो गई। यह घटना विक्रमी संवत 1627 की बताई जाती है।

उस समय सिरमौर राजधानी का शासन महाराज प्रदीप प्रकाश के अधीन था। एक रात्रि माता ने उन्हें भी स्वप्न में दर्शन देकर भक्त रामदास वाली कहानी सुनाई तथा मंदिर बनवाने की इच्छा प्रकट की। माता का आदेश पाकर महाराज प्रदीप प्रकाश ने तुरन्त ही मंदिर के निर्माण का आदेश दे दिया। तीन वर्षों में ही मंदिर का निर्माण पूरा कर लिया गया। इस मंदिर के लिए कीमती सामान आदि जयपुर से मंगवाया गया। 1630 में बने इस मंदिर की शोभा देखते ही बनती है। यह मंदिर मुगलकालीन वास्तुकला का जीता जागता प्रमाण है। भवन के चारों ओर देवी देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

मंदिर नाहन से लगभग 23 किमी दूर है। आप त्रिलोकपुर पहुँचने के लिए नाहन से टैक्सी किराए पर ले सकते हैं। मंदिर तक जगाधरी, नरायणगढ़, और पावंटा साहिब से जाना भी काफी सुविधाजनक है। त्रिलोकपुर से शिमला 159 किमी, अंबाला 52 किमी, देहरादून 112किमी और चंडीगढ़ 55 किमी दूर है।

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