पहाड़ों की लेडी ड्राइवर, पति और परिवार ने छोड़ा साथ- ऐसे बनाई खुद की पहचान

पहाड़ों की लेडी ड्राइवर, पति और परिवार ने छोड़ा साथ- ऐसे बनाई खुद की पहचान

राइट न्यूज हिमाचल

कहते हैं कि दर्द को अपनी ताकत बना लिया जिसने, सपनों का आसमान पा लिया उसने। जो कभी रुका नहीं, थका नहीं, जीत उसी की होती है, जो झुका नहीं। इन लाइनों को बखूबी चरितार्थ कर दिखाया है शिमला की मीनाक्षी नेगी ने। मीनाक्षी नेगी के जीवन की कहानी ना जाने कितनी ही महिला को प्रेरित कर रही है। मीनाक्षी नेगी ने सामाजिक बंदिशों और आर्थिक कठिनाइयों को पीछे छोड़ते हुए टैक्सी ड्राइवर बनने का साहसिक कदम उठाया है।

आज मीनाक्षी महिला सशक्तिकरण की मिसाल हैं। पहाड़ों के संकरे रास्तों पर गाड़ी चलाना, जहां कई लोग डरते हैं, मीनाक्षी के लिए रोजमर्रा का काम बन चुका है। मीनाक्षी को ड्राइविंग करते देख बड़े-बड़ों के पसीने छूट जाते हैं।मीनाक्षी की यात्रा आसान नहीं थी। जब उन्होंने गाड़ी चलाने को पेशे के रूप में चुना, तब उनके पति ने उनका साथ नहीं दिया।

मीनाक्षी बताती हैं कि पांच महीने तक मेरे पति ने मुझसे बात तक नहीं की। घर के पीछे के दरवाजे से मैं अंदर आती थी।ल इसके बावजूद मैंने कभी हार नहीं मानी।अपने काम के शुरुआती दिनों में मीनाक्षी को समाज के तानों का सामना करना पड़ा। लोग कहते थे- तलाकशुदा होगी या विधवा होगी, तभी इतनी कामयाब हो गई।

मगर मीनाक्षी ने इन सब बातों को पीछे छोड़ते हुए अपना और अपने परिवार का भविष्य संवारने की ठानी।मीनाक्षी को गाड़ी चलाने का शौक बचपन से था। शादी के बाद, जब आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी, तो उन्होंने अपने इस शौक को पेशे में बदल दिया।

शुरुआत में, वह बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए गाड़ी चलाती थीं। बाद में, उन्होंने टैक्सी चलाने का फैसला किया।मीनाक्षी ने 2003 से गाड़ी चलानी शुरू की, लेकिन पिछले छह सालों से इसे पेशे के रूप में अपनाया। उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी के दौरान, आर्थिक संकट ने उन्हें टैक्सी ड्राइवर बनने के लिए प्रेरित किया। आज, उनके पास अपनी चार गाड़ियां हैं और वह शिमला से लेकर दिल्ली तक टैक्सी चलाती हैं।

हिमाचल में महिलाओं की सुरक्षा के कारण मीनाक्षी रात में भी टैक्सी चलाने से नहीं डरतीं। वह कहती हैं- लोग अब मुझ पर भरोसा करते हैं। परिवारों को लाने-ले जाने के लिए खुद मुझे फोन करते हैं।मीनाक्षी की दो बेटियां हैं, जो शिमला के नामी स्कूलों में पढ़ती हैं। दोनों अपनी मां को रोल मॉडल मानती हैं। मीनाक्षी के पति, जो कभी उनके काम के खिलाफ थे, अब उन पर गर्व महसूस करते हैं।मीनाक्षी का सपना है कि वह शिमला में पहली महिला टैक्सी यूनियन बनाएं।

वह कहती हैं- कई लड़कियां मुझसे संपर्क में हैं। मैं चाहती हूं कि वो आत्मनिर्भर बनें। मीनाक्षी नेगी की कहानी केवल एक महिला टैक्सी ड्राइवर की नहीं, बल्कि उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को साकार करना चाहती हैं। उनके हौसले ने साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।

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