हिमाचल में निजी भूमि मुआवजे के कोर्ट में 1600 मामले लंबित, 1 हजार करोड़ तक पहुंची देनदारी

हिमाचल में निजी भूमि मुआवजे के कोर्ट में 1600 मामले लंबित, 1 हजार करोड़ तक पहुंची देनदारी

राइट न्यूज हिमाचल

हिमाचल में निजी भूमि पर सड़क निर्माण, राजस्व अभिलेखों में सड़क प्रविष्टियों की कमी और निजी भूमि के मुआवजे को लेकर दायर मुकद्दमें आदि के करीब 1600 मामले विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं. वहीं, अब तक निपटाए जा चुके और लंबित भूमि अधिग्रहण मामलों के कारण विभाग पर करीब 300 करोड़ रुपये की वित्तीय देनदारी हो चुकी है. सभी लंबित मामलों को शामिल करने पर यह देनदारी 1000 करोड़ रुपए तक पहुंच सकती है. इसका खुलासा मुख्य सचिव ‘निर्माण भवन’ में आयोजित लोक निर्माण विभाग की एक दिवसीय कार्यशाला में हुआ है.

इस मौके पर मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने अधिकारियों को लोक निर्माण विभाग में न्यायालयीन मामलों के प्रबंधन को सुदृढ़ करने के लिए कानूनी समाधान खोजने को कहा है. उन्होंने अधिकारियों से आग्रह किया कि वे जिन मामलों को देख रहे हैं, उनके निपटारे की व्यक्तिगत जिम्मेदारी लें.मंत्रिमंडलीय उप-समिति का गठनमुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने कहा कि राज्य सरकार ने इस मुद्दे पर एक मंत्रिमंडलीय उप-समिति का गठन किया है. इसमें संबंधित अधिकारियों की सक्रिय भागीदारी भी उतनी ही आवश्यक है.

उन्होंने अधिकारियों को सलाह भी दी कि वे मीडिया में प्रकाशित मामलों पर सतर्क निगाह रखें. मुख्य सचिव ‘निर्माण भवन’ में आयोजित लोक निर्माण विभाग की एक दिवसीय कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे थे, जिसका उद्देश्य न्यायालयीन मामलों के प्रबंधन में क्षमता वृद्धि और सुधार करना था.प्रबोध सक्सेना ने अधिकारियों को अन्य राज्यों के लोक निर्माण विभागों से संवाद स्थापित कर उनके अनुभवों और सफल रणनीतियों को जानने की सलाह दी.

उन्होंने कहा कि केवल मध्यस्थता पर ध्यान केंद्रित करना पर्याप्त नहीं है. प्रत्येक मामले को गंभीरता और उत्तरदायित्व के साथ निपटाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि कार्यशाला के अंत में कुछ ठोस और व्यावहारिक समाधान सामने आने चाहिए, जिनकी आगामी समय में निगरानी की जा सके. मुख्य सचिव ने मामलों के निपटारे में देरी को कम करने और प्रक्रियाओं को सरल बनाने की बात कही. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि दीर्घकालिक मामलों के समाधान के लिए विधायी उपाय भी एक प्रभावी विकल्प हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे लोगों में कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, न्यायालयों में मामलों की संख्या में भी तीव्र वृद्धि हुई है.

आज लोग अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति अधिक सजग और जानकार हो गए हैं, जिससे न्यायिक कार्यवाहियों में वृद्धि हुई है. ऐसे में व्यवस्था को अधिक सक्षम और तैयार किया जाना जरूरी है.विभाग पर 300 करोड़ की वित्तीय देनदारीलोक निर्माण विभाग के सचिव डॉ. अभिषेक जैन ने कहा कि कार्यशाला का उद्देश्य न्यायालयीन मामलों के निपटारे की प्रक्रिया में आई विसंगतियों को कम करने के उपायों पर मंथन करना है. उन्होंने कहा कि अब तक निपटाए जा चुके और लंबित भूमि अधिग्रहण मामलों के कारण विभाग पर करीब 300 करोड़ रुपये की वित्तीय देनदारी बन चुकी है. वहीं, सभी लंबित मामलों को शामिल करने पर यह देनदारी 1000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है.

उन्होंने कहा कि अधिकारियों को समयबद्ध कार्य निष्पादन के लिए फाइलों की दोहराव, वित्तीय, अनुपालन और प्रशासनिक लागत को घटाने को लेकर सोचना चाहिए. लोक निर्माण विभाग के विशेष सचिव हरबंस सिंह ब्रसकोन ने बताया कि योजना, निर्माण और रखरखाव के कार्यों में संलग्न है. उन्होंने निजी भूमि पर सड़क निर्माण, राजस्व अभिलेखों में सड़क प्रविष्टियों की कमी और निजी भूमि के मुआवजे को लेकर दायर मुकद्दमें आदि प्रमुख समस्याओं के बारे में बताया.

उन्होंने कहा कि प्रदेशभर में ऐसे करीब 1600 मामले विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं.”राज्य का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह नागरिकों की भूमि की रक्षा करे. भूमि अधिग्रहण करते समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह भूमि सभी अड़चनों से मुक्त हो और भूमि का हस्तांतरण विधिसम्मत तरीके से किया जाए.” – शरद कुमार लगवाल, प्रधान सचिव (विधि)

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