हिमाचल की बेटी ने दृष्टिबाधा को मात देकर फतेह किया माउंट एवरेस्ट, बचपन में चली गई थी रोशनी- रचा इतिहास

हिमाचल की बेटी ने दृष्टिबाधा को मात देकर फतेह किया माउंट एवरेस्ट, बचपन में चली गई थी रोशनी- रचा इतिहास

राइट न्यूज हिमाचल

आठ साल की उम्र में छोंजिन अंगमो की आंखों की रोशनी चली गई. लेकिन उसका हौंसला कभी कम नहीं हुआ. ऊंचे ऊंचे पहाड़ों से भी बड़ा छोंजिन अंगमो का हौंसला रहा और आज उन्होंने वो एतिहास रच दिया है, जिसकी कल्पना बहुत ही कम लोग करते हैं. हिमाचल प्रदेश की दृष्टिबाधित ट्राइबल गर्ल छोंजिन अंगमो ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतेह कर लिया है.

बचपन में ही आंखों की रोशनी खो देने वाली अंगमो ने न केवल जिंदगी की चुनौतियों से लड़ाई लड़ी, बल्कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (8,848 मीटर) पर तिरंगा फहराकर इतिहास रच दिया.जानकारी के अनुसार, किन्नौर जिले के चांगों गांव से ताल्लुक रखने वाली 28 वर्षीय छोंजिन अंगमो दुनिया की पहली दृष्टिहीन महिला पर्वतारोही बन गई हैं, जिन्होंने एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखा है.

उन्होंने 19 मई 2025 को सुबह करीब 8:34 बजे पायनियर एवरेस्ट एक्सपीडिशन के तहत यह उपलब्धि हासिल की. इस कठिन मिशन में उनके साथ गाइड डांडू शेरपा और ओम गुरुंग मौजूद थे.छोंजिन अंगमो के जीवन की शुरुआत ही संघर्षों से हुई. जब वह मात्र आठ वर्ष की थीं, तो तीसरी कक्षा में पढ़ाई के दौरान एक दवा से एलर्जी के कारण उनकी आंखों की रोशनी चली गई. लेकिन उन्होंने हालात के आगे घुटने नहीं टेके.

वर्ष 2006 में उनके माता-पिता — पिता अमर चंद और माता सोनम छोमो — ने उन्हें लेह स्थित महाबोधि स्कूल और दृष्टिबाधित बच्चों के छात्रावास में दाखिला दिलाया, जहां से उनके जीवन की नई राह शुरू हुई.छोंजिन सिर्फ पर्वतारोहण में ही नहीं, बल्कि खेलों में भी उत्कृष्ट हैं. वे एक राष्ट्रीय स्तर की पैरा-एथलीट हैं और खेलों में कई उपलब्धियां अपने नाम कर चुकी हैं.

इससे पहले वह माउंट कणामो जैसे दुर्गम शिखरों को भी फतह कर चुकी हैं.फिलहाल छोंजिन अंगमो यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में कार्यरत हैं. बैंक ने भी उनके एवरेस्ट अभियान में आर्थिक और नैतिक सहयोग देकर उनके सपने को साकार करने में मदद की. गौरतलब है कि छोंजिन अंगमो को उनके साहस और उपलब्धियों के लिए CavinKare ABILITY अवॉर्ड 2024 से भी सम्मानित किया जा चुका है.

उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्ची दृष्टि आंखों से नहीं, बल्कि दृढ़ निश्चय और हौसले से होती है.गौरतलब है कि छोंजिन अंगमो की यह उपलब्धि केवल हिमाचल प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व का क्षण है. उन्होंने दुनिया को यह दिखा दिया कि शारीरिक सीमाएं कभी भी सपनों की ऊंचाई तय नहीं कर सकतीं.

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