अटल रोहतांग टनल से दो किलोमीटर पीछे खेतों से ही हाथोंहाथ बिक गया आलू

अटल रोहतांग टनल से दो किलोमीटर पीछे खेतों से ही हाथोंहाथ बिक गया आलू

जहां एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन और अटल टनल के लोकार्पण की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं, वहीं दूसरी ओर कार्यक्रम स्थल से दो किलोमीटर पीछे कुठविहार में कृषक रमेश और उनकी पत्नी शांति आलू की फसल की खुदाई में व्यस्त हैं।  रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के दौरे को देखते हुए यहां नाका लगाया गया है और गाड़ियों को यहीं रोका गया। लोगों गाड़ियों से उतरकर किसान से खेत में ही मोलभाव करके आलू खरीद रहे हैं। 50 किलो की बोरी 1300 से 1400 रुपये में बिक रही है। यह ऐसी जगह है जहां मई से लेकर अक्तूबर महीने तक ही कृषि कार्य चलते हैं। उसके बाद यहां बर्फ ही बर्फ होती है और ऊपर पहाड़ से हिमखंड गिरते हैं। इसलिए यहां मकान भी गुफानुमा ही बनाए गए हैं।

यह एक मंजिल के कंक्रीट के अस्थायी मकान हैं। रमेश और शांति की तरह ही कई अन्य कृषक भी यहां अस्थायी रूप से रहते हैं। छह महीने के बाद रोहतांग पूरी से बंद हो जाता है तो इन्हें अक्तूबर में ही लौटना होता है। फिर छह महीने तक मनाली में ही रहना होता है। लाहौल के इस क्षेत्र के अलावा इनका मनाली में भी अपना मकान है। जहां रमेश और शांति खेत में काम में जुटे थे, वहीं उनसे थोड़ा सा आगे गौतम कुमार का खेत है। गौतम कुमार ने भी यहां एक मंजिल का कंक्रीट का अस्थायी मकान बनाया हुआ है। उन्होंने कहा कि उन्होंने साथ में जो आलू की बोरियां भर रखी हैं। यह हाथोंहाथ यहीं बिक गई हैं। लाहौल के आलू की वैसे भी देश और दुनिया में मांग रहती है। कुछ खरीददार तो इसी नाके में हैं। एक पुलिस अधिकारी भी उनसे आलू खरीद कर ले गया है।

रमेश और शांति ने बताया कि अटल टनल के बन जाने से यह क्षेत्र मुख्यधारा में आ जाएगा। वे छह महीने के लिए पूरी तरह से अपनी जन्मभूमि से कट जाते थे, अब ऐसा नहीं होगा। जब भी चाहेंगे, घर आ जाएंगे। गौतम कुमार भी बोले कि यह बहुत बड़ा काम हो रहा है। इससे आलू, मटर या गोभी के परिवहन की लागत घट जाएगी और छह महीने अधिक समय अपने खेतों को दे पाएंगे। इससे व्यापारी भी रोहतांग दर्रा के बजाय मनाली से थोड़े से ही वक्त में पहुंच जाएंगे, उधर से आधा दिन लग जाता है। सड़क भी ठीक नहीं है।  

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