आखिर कब तक शहीद होते रहेंगे जवान
कब तक निंदा और भर्त्सना की परम्परा रहेगी कायम,
एक बार मिल जाए गम,रख लेंगे हम संयम,
हो जाए अब आर-पा’र, हमलो को अब नहीं सहेंगे हरदम,
पीठ पर बार करने वालों की,निंदा से नहीं चलेगा अब काम
बंद करो शहीदों की चिताओं पर सियासत, आतंकवाद का कर दो काम तमाम।
ऐ मेरे सियासतदां,करो कुछ ऐसा इंतजाम
अब ना हो कोई शहीद,ना टूटे कोई घर मकान…
जो कह गए अलविदा,वो लाल मेरे थे,
वो मातृभूमि मेरी थी,वो प्राण मेरे थे..
मेरे अपनों-
चल सको तो चंद कदम वहां तक चल कर देखो..
जहां मेरी सीमा के प्रहरी सोये हैं शमशान में
करुण विलाप करती है माता अपने हिन्दूस्तान में
बेटा गया,सुहाग गया,बहन से दूर हो गया भाई,
बच्चों के सिर से उठ गया साया, आतंकियो को जरा भी दया ना आई
सवा सौ करोड़ देशवासी,चाह रहे एक ही परिणाम
आतंकी नहीं सुधरने वाला, आतंकवाद का करो इंतजाम
अब तो हो जाय आर-पार,चाहे जो भी हो अंजाम ।
आखिर कब तक शहीद होंगे जवान।
शांति और सद्भाव का संदेश देते हम हैं सदा,
लेकिन,
नहीं अब समझौता होगा,वीर जवानो की लाशों पर,
ईंट का जवाब हम पत्थर से देंगे,मत कर शक हमारे इरादों पर
हिम्मत है तो छद्दम छोड़,सिने पर वार करके अब दिखला,
बाप हैं,बाप ही रहेंगे हम तेरे,
अब समझौता शहीदों की चिताओं पर नहीं होगा।
खून खौलता है अब हरदम,पढ़ खबर अखबारों में,
शेरों और सिंहो की पेशी,क्यूं हो रही गीदड़ के दरबारों में,
इमान नहीं इनका कोई,ये हराम के ज़ादे हैं
अब करना है काम तमाम इनका,
क्योंकि,शांति और सद्भाव…
गोली,गोलों का जवाब नहीं होता,
आतंकी, हत्यारों के सम्मुख, अहिंसा का प्रस्ताव नहीं होता।
आखिर कब तक शहीद होते रहेंगे जवान…..?
आखिर कब तक शहीद होते रहेंगे जवान…..?