हिमाचल: बचपन में खोए दोनों हाथ, पैरों की अंगुलियों से तकदीर लिख पाई सरकारी नौकरी

हिमाचल: बचपन में खोए दोनों हाथ, पैरों की अंगुलियों से तकदीर लिख पाई सरकारी नौकरी

राइट न्यूज हिमाचल

हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी के सुंदरनगर के रडू गांव के रजत कुमार ने अपनी अद्वितीय संघर्षशक्ति से यह साबित कर दिया कि कोई भी चुनौती इंसान की मेहनत और इच्छाशक्ति के सामने कुछ नहीं है। रजत ने एक हादसे में अपने दोनों बाजू गंवा दिए थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और पैरों की अंगुलियों से अपनी तकदीर को बदल डाला।

बता दें कि संघर्षों में अपना जीवन जी रहे रजत सुंदरनगर डिवीजन के लोक निर्माण विभाग में बतौर जूनियर ऑफिस असिस्टेंट (जेओए) आईटी तैनात हो गए हैं। रजत की जिंदगी में सबसे बड़ा मोड़ सात साल की उम्र में आया जब वह हाइटेंशन विद्युत लाइन के पास खेल रहे थे और करंट से झुलस गए। इस हादसे में उन्हें अपने दोनों बाजू गंवाने पड़े।

बावजूद इसके, रजत के माता-पिता, दिनेश कुमारी और जयराम ने उन्हें कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया। उन्होंने रजत को विपरीत परिस्थितियों में भी उठने और संघर्ष करने की हिम्मत दी।रजत ने हादसे के बाद डॉक्टर बनने का सपना देखा और इसके लिए नीट परीक्षा दी। उन्हें नेरचौक मेडिकल कॉलेज में सीट भी मिल गई थी, लेकिन शारीरिक अक्षमता के कारण मेडिकल बोर्ड ने उन्हें डॉक्टर बनने से रोक दिया।लेकिन रजत ने हार नहीं मानी और मनोविज्ञान में मास्टर डिग्री हासिल की।

मेहनत और लगन से मिली सरकारी नौकरीरजत ने अपने पैरों की अंगुलियों से लैपटॉप पर काम करने की कला सीखी और बिना हाथों के भी सामान्य कर्मचारी की तरह कार्य करने की क्षमता प्राप्त की। उनकी कठिन मेहनत और लगन को देखते हुए उन्हें आखिरकार सरकारी नौकरी मिल गई और वह अब लोक निर्माण विभाग में जेओए आईटी के रूप में कार्यरत हैं।

रजत अब प्रशासनिक सेवा में जाने के लिए तैयारी कर रहे हैं। उनका यह संघर्ष न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरी समाज के लिए एक प्रेरणा बन चुका है। बिना हाथों के भी उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो कोई भी मुश्किल बड़ी नहीं होती। रजत कुमार का संघर्ष और सफलता यह दर्शाता है कि शारीरिक अक्षमता को मनोबल और मेहनत से पार किया जा सकता है।

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