उत्तराखंड में जबरन धर्मांतरण पर कानून सख्त, अब 10 लाख का जुर्माना और उम्र कैद; कैबिनेट के अन्‍य फैसले

उत्तराखंड में जबरन धर्मांतरण पर कानून सख्त, अब 10 लाख का जुर्माना और उम्र कैद; कैबिनेट के अन्‍य फैसले

देहरादून। झांगुर प्रकरण के बाद उत्तराखंड ने भी जबरन मतांतरण कानून को और सख्त बना दिया है। धामी कैबिनेट की बुधवार को हुई बैठक में इसके लिए उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम में संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी गई।

यह विधेयक गैरसैंण में होने वाले विधानसभा के मानसून सत्र में सदन में पेश किया जाएगा। इसमें व्यक्तिगत व सामूहिक मतांतरण के मामलों में 10 लाख रुपये तक का जुर्माना और आजीवन कारावास का प्रविधान किया गया है। यही नहीं, इन प्रकरणों में आरोपितों को जल्दी से जमानत मिलना भी मुश्किल होगा। सत्र न्यायालय में सुनवाई के बाद ही न्यायालय इस पर निर्णय लेगा।

मतांतरण के लिए इंटरनेट नेटवर्किंग साइट का इस्तेमाल करने वालों पर आइटी एक्ट के तहत भी कार्रवाई होगी। मतांतरण के मामलों में गैंगस्टर एक्ट की तरह आरोपितों की संपत्ति की कुर्क करने के लिए डीएम को किया अधिकृत किया जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में सचिवालय में हुई कैबिनेट की बैठक में 26 विषय रखे गए, जिन्हें मंजूरी दी गई।

विधानसभा सत्र आहूत होने के चलते कैबिनेट के निर्णयों की ब्रीफिंग नहीं हुई। कैबिनेट ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में मतांतरण की घटनाओं को देखते हुए राज्य में लागू मतांतरण कानून को कठोर बनाने के दृष्टिगत धर्म स्वतंत्रता अधिनियम में संशोधन विधेयक को चर्चा के बाद स्वीकृति दे दी। वर्ष 2018 से लागू इस अधिनियम में वर्ष 2022 में संशोधन किया गया था। अब इसमें जबरन मतांतरण पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए जुर्माना और सजा दोनों को बढ़ाने के साथ ही कुछ नए प्रविधान भी जोड़े गए हैं।

सामान्य वर्ग के मतांतरण के मामलों में पूर्व में दो से सात साल तक की सजा और 25 हजार रुपये के जुर्माने का प्रविधान था। अब जुर्माना राशि दोगुना करने के साथ ही सजा की अवधि तीन से 10 साल की गई है। अनुसूचित जाति, जनजाति व दिव्यांग जनों के मामलों में पूर्व दो से 10 वर्ष की सजा और 25 हजार के जुर्माने का प्रविधान था। अब सजा की अवधि पांच से 14 साल और जुर्माना राशि एक लाख रुपये की गई है।

सामूहिक मतांतरण के मामलों में पहले तीन से 10 साल की सजा और 50 हजार रुपये के जुर्माने का प्रविधान रखा गया था। अब सजा की अवधि बढ़ाकर सात से 14 साल और जुर्माना राशि एक लाख रुपये की गई है।

संशोधन विधेयक के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मतांतरण के आशय से किसी व्यक्ति को उसके जीवन या संपत्ति के लिए भय, हमला व बल प्रयोग करता है, विवाह का वचन देता है या इसके लिए उत्प्रेरित करता है अथवा षड्यंत्र करता है, प्रलोभन देकर नाबालिक महिला व पुरुष की तस्करी करता है या फिर दुष्कर्म का प्रयास करता है तो ऐसे मामलों में भी कानून को कठोर किया गया है। इसके तहत 20 वर्ष के कठोर कारावास की सजा का प्रविधान किया गया है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकेगा।

विदेशी या अविधिक संस्थाओं से चंदा लेने पर 10 लाख जुर्माना

विधेयक में पहली बार यह प्रविधान किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति जबरन मतांतरण के संबंध में किसी विदेशी या अविधिक संस्थाओं से धन प्राप्त करेगा तो उस पर भी कड़ी कार्रवाई होगी। इसके लिए सात से 14 साल की सजा और 10 लाख रुपये का जुर्माना वसूला जाएगा।

इंटरनेट नेटवर्किंग साइट से ब्लैकमेल करने वालों पर शिकंजा

मतांतरण के लिए इंटरनेट नेटवर्किंग साइट का इस्तेमाल करने वालों पर भी शिकंजा कसा गया है। इस तरह की गतिविधियों में लिप्त तत्वों पर इस अधिनियम के साथ ही आइटी एक्ट के तहत भी कार्रवाई होगी। अधिनियम में इसके लिए दो से सात साल तक की सजा और 50 हजार रुपये के जुर्माने का प्रविधान है।

संपत्ति कुर्क करने को डीएम अधिकृत

मतांतरण के मामलों में गैंगस्टर एक्ट की तरह आरोपित की संपत्ति कुर्क करने का प्रविधान भी किया गया है। इसके लिए डीएम को अधिकृत किया गया है।

कोई भी दर्ज करा सकता है प्राथमिकी

मतांतरण के मामले में अब कोई भी व्यक्ति पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करा सकता है। पहले पीडि़त के रक्त संबंधी रिश्तेदार द्वारा ही प्राथमिकी दर्ज कराने का प्रविधान था।

आपरेशन कालनेमि की भी छाप

राज्य में चल रहे आपरेशन कालनेमि की छाप भी अब मतांतरण अधिनियम में दिखेगी। इस कड़ी में प्रविधान किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर या धोखे की मंशा से किसी अन्य व्यक्ति के धार्मिक वेशभूषा, सामाजिक पद प्रतिष्ठा का वेश धारण करने के साथ ही जाति, धर्म, मूल, लिंग, जन्म व निवास स्थान का प्रतिरूपण अथवा किसी धार्मिक संस्था या संगठन का छद्म रूप धारण कर जनता को भ्रमित व सार्वजनिक भावनाओं को आहत करता है तो उसके विरुद्ध भी धर्म स्वतंत्रता अधिनियम के तहत कार्रवाई होगी।

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